सामान्यतः दान और दक्षिणा को पर्यायवाची माना जाता है, किंतु इनमें पर्याप्त अंतर है। दान किया जाता है, जबकि दक्षिणा दी जाती है। दान गरीब, ब्राह्मण, असहाय अथवा किसी अन्य को भी किया जा सकता है, जबकि दक्षिणा ब्राह्मण, गुरु आदि को श्रद्धा-भाव से दी जाती है, जिसमें दया का नहीं, कर्तव्य एवं आदर का भाव निहित होता है।
इसी प्रकार, विश्वास और भरोसा, आवाहन और आह्वान, साधु और संत, सिंहावलोकन और विहंगावलोकन जैसे अनेक शब्दों में भी सूक्ष्म भेद हैं, जिन्हें हम सामान्यतः अनदेखा कर देते हैं।
शब्दों के शुद्ध प्रयोग और उनकी निर्मिति को स्पष्ट करते हुए, अंग्रेजी में उनके समरूप शब्दों तथा पर्यायवाची शब्दों से उनके भेदों का विशद विश्लेषण भाषाविद् कमलेश कमल ने अपनी पुस्तक ‘शब्द-संधान’ में प्रस्तुत किया है।
पुस्तक तीन खंडों में विभाजित है— ‘शब्द-संधान’, ‘शब्द-संधान के सूत्र’ तथा ‘शब्द-संकलन’।
लेखक ने उदाहरण सहित यह भी स्पष्ट किया है कि ‘सूर्या’ का अर्थ सूरज नहीं, ‘कृष्णा’ का अर्थ कृष्ण नहीं, और ‘भीमा’ का अर्थ भीम नहीं होता। इसी प्रकार, अनेक कोशकारों एवं व्याख्याकारों द्वारा की गई प्रचलित भ्रांतियों को भी पुस्तक में इंगित किया गया है।
जैसे अंग्रेजी में एक शब्द के विभिन्न अर्थ संदर्भानुसार भिन्न होते हैं, वैसे ही हिंदी के शब्दों के पर्यायों में भी सूक्ष्म भेद होते हैं। उनके सही प्रयोग से भाषा की गरिमा और प्रामाणिकता बढ़ती है। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक तैयार की गई है। हिंदी शब्दों के शुद्ध प्रयोग और अर्थ भेद’ को इस कृति का विशेष आकर्षण माना जा सकता है। निश्चित ही, यह पुस्तक विद्यार्थियों, प्रतियोगी परीक्षा के अभ्यर्थियों तथा हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी और संग्रहणीय है।
पुस्तक : शब्द-संधान
लेखक : कमलेश कमल
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य : 500 रुपये
पुस्तक लिंक https://kapot.in/product/shabda-sandhaan/
साभार: [हिन्दुस्तान/ 20 अप्रैल/पढ़िएगा ज़रूर