हजार-बरस से भुगत रहे हो
कौन से पाप किये हिंदू ने ? जो ऐसे नेता पाये ;
धर्म से दूरी घोर-पाप है , हिंदू को ये ही भटकाये ।
मृग-मरीचिका में भटक रहा है , प्यासा ही मरता जाता ;
निर्मल-जल का जहाॅं स्रोत है , हिंदू ! वहाॅं नहीं आता ।
धर्म-मार्ग में आना होगा , वहीं सुरक्षित जीवन होगा ;
परम-शत्रु तब पहचानोगे , शत्रु-बोध जब जाग्रत होगा ।
अभी शत्रु को मित्र समझते , अपना हृदय-सम्राट बनाते ;
पर अब्बासी – हिंदू नेता , तेरा हृदय चीरते रहते ।
ये पेशेवर हिंदू – नेता , तन – मन – धन से म्लेच्छ हैं ;
बेचारा हिंदू ! छोटी – मछली , पर ये नेता मगरमच्छ हैं ।
हिंदू ! तू कैसे बच पायेगा ? तेरे रक्षक ही भक्षक हैं ;
तेरे चौकीदार चोर हैं , जहरीले – सर्प ये तक्षक हैं ।
अब तो जाग्रत शत्रु-बोध ही , हिंदू ! तुझे बचा सकता है ;
वरना ये अब्बासी-हिंदू , तेरा अस्तित्व मिटा सकता है ।
जो कायर,कमजोर,नपुंसक , इनके टुकड़ों पर पलता है ;
जै – जै कार इसी की करता , अपनी पूंछ हिलाता है ।
मास्टरस्ट्रोकवादी भी यही हैं , पैसा पाकर ट्वीट कर रहे ;
लकवाग्रस्त है इनकी बुद्धि , अपना सत्यानाश कर रहे ।
जागो हिंदू ! अब तो जागो , अब तो होश में आ जाओ ;
अंत समय आने वाला है , अब तो अपनी जान बचाओ ।
भविष्य-मालिका भविष्य का दर्पण,स्पष्ट रूप से भास रहा है ;
धर्महीन – अज्ञानी हिंदू , अपना जीवन गंवा रहा है ।
अब्बासी-हिंदू का मन गंदा है , हिंदू ! इसके साथ को छोड़ो ;
तेरी जान का यही है दुश्मन , इसको पूरी तरह से छोड़ो ।
सबसे बड़ी यही बीमारी , ये कैंसर से बढ़कर है ;
इसका काटा पानी न मांगे , रहना इससे बचकर है ।
पूरी तरह से इसको त्यागो और अच्छी-सरकार बनाओ ;
हिंदू ! तुम ये कर सकते हो , बस धर्म-सनातन में आओ ।
बुद्धि का लकवा दूर हटेगा , पूरी बुद्धि शुद्ध होगी ;
बुद्धि का पूरा खेल चल रहा , शुद्ध-बुद्धि से जीत मिलेगी ।
धर्म – मार्ग में आने भर से , तेरी ये बुद्धि शुद्ध होगी ;
अब तक मिलती रही पराजय , तब ये जीत में बदलेगी ।
हजार-बरस से भुगत रहे हो, कितना अन्याय हुआ तुझ पर ?
अब भी अत्याचार हो रहे , मौत का साया है तुझ पर ।
अब्बासी-हिंदू मौत का साया , हिंदू ! को ये लील जायेगा ;
केवल धर्म-मार्ग पर आकर , हिंदू ! तू इससे बच पायेगा ।