श्वेताभ पाठक (श्वेत प्रेम रस) प्रश्न- 1. शास्त्र क्या है?
2. क्या किसी क्षेत्र की लोक व्यवाहरिक पूजा पदतिया शास्त्र को भी उलट (overrule) सकती है?
3. क्या समय के साथ शास्त्र में क्या कुछ संशोधन होते है अगर हाँ तो उन्हें कौन कर सकता है eg. जैसे आपने एक लेख मे कहा था की कलयुग मे व्यापार करते कुछ हद तक झूठ का साहरा लिया जा सकता है?
4. अगर संशोधन हो सकता है तो उसे कौन कर सकता है और उसकी अधिसूचना कौन देगा?
5. क्या रामचरितमानस या अन्य ग्रन्थ जो कलयुग में लिखे गए थे वो भी शास्त्र की श्रेणी में आते है?
उत्तर- आदरणीय श्री श्वेताभ पाठक भैया जी
1. शास्त्र कहते हैं जो लोकायत में मन बुद्धि और चित्त पर शासन कर या कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेंद्रियों पर शासन कर उनको सही सही दिशा की ओर लगाए ।
वह जो शासन करे और इस प्रकार करें कि वह मन को सही सही मार्ग दिखा सके ।
शास्त्र बनाने का मूल उद्देश्य है मनुष्य के मन पर शासन करते हुए उसे सही दिशा में जागृत कर के रखे ।
शास्त्र का मूल उद्देश्य है कि हर विधि से मनुष्य को अपने मनुष्य योनि या ज्ञान प्रधान देह के परम उद्देश्य को याद करवाये रखना ।
मनुष्य के मूल उद्देश्य की प्राप्ति करवाना ही शास्त्र का उद्देश्य है ।
शास्त्र वही है जो भगवान की ओर मोड़े ।
शास्त्र वही है जो दुःख निवृत्ति करे ।
शास्त्र – यह जो पीछे त्र लगा है न , इसका अर्थ होता है त्राण करना , तारना ।
मनुष्य को इस भवसागर से तारने का काम करता है शास्त्र ।।
वह शास्त्र शास्त्र नहीं जिसमें बहुत से कर्मकांड विधियाँ हों , संस्कृत के क्लिष्ट श्लोक और मन्त्र हों लेकिन अगर वह भगवान से प्रेम नहीं पैदा करवाता तो वह शास्त्र त्यागने योग्य है ।
शास्त्र बन्धन को खोलता है न कि बन्धन में डालता है ।
शास्त्र मुक्त करता है सांसारिक बन्धनों से ।।
शास्त्र का काम है स्वतंत्र करना , बन्धन नष्ट करना ।
परमानंद की प्राप्ति करवाना ।
दुखनिवृत्ति करवाना ।
यही शास्त्र का काम है ।।
आगम निगम पुराण अनेका ।
पढ़े सुने सब कर फल एका ।
तव पद पंकज प्रीति निरन्तर ।
सब साधन कर यह फल सुंदर ।।
तो यही है शास्त्र ।
लेकिन आज शास्त्र के मूल उद्देश्य से बड़े बड़े धर्माधिकारी और स्वयं को शंकराचार्य घोषित करवाने वाले मूर्धन्य विद्वान भी हट गए हैं ।
उनके लिए शास्त्र का पालन करना है भले ही वह भगवान से विरोध कर रहा हो ।।
जैसे अभी राम मंदिर के case में हुआ ।
2. शास्त्र को कोई भी overrule नहीं कर सकता ।
शास्त्र शास्त्र ही रहते हैं ।
सूर्य आग का गोला है तो यह सत्यता सदा रहेगी ।
भले ही Antarctica में रहने वाले उस पर प्रश्न चिन्ह लगायें कि सूर्य कोई आग का गोला नहीं है क्योंकि हमें कोई आग feel नहीं होती ।
तो यह उनकी अज्ञानता है ।
3. शास्त्र में कोई संशोधन नहीं होते ।
वह सदा एक ही रहते हैं ।
सूर्य पूर्व से उगेगा तो यह सत्य सत्य ही रहेगा ।
इसे कोई भी उल्टा नहीं कर सकता ।
4. शास्त्र के विधियों में परिवर्तन हो सकता है लेकिन उद्देश्य में कदापि नहीं ।
जैसे किसी का प्रेम मन्दिर जाना उद्देश्य है तो अगर train cancel हो गयी तो वह दूसरा ट्रेन पकड़ सकता है या बस पकड़ सकता है या car से जा सकता है लेकिन सभी साधनों की दिशा और route एक ही होगी और वह है प्रेम मन्दिर ।
5. भगवदप्राप्त महापुरुषों द्वारा लिखा गया ग्रंथ शास्त्र ही कहलाता है ।
क्योंकि यह एकमात्र वेदों के सिद्धांत को ही प्रतिपादित करेंगे अन्य को नहीं ।
– Sh. Shwetabh Pathak
( श्री श्वेताभ पाठक )