Grok: दारा सिंह, जिनका पूरा नाम रवींद्र कुमार पाल है, वर्तमान में ओडिशा के क्योंझर जिला जेल में बंद हैं। उन्हें 1999 में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो नाबालिग बेटों, फिलिप (10) और टिमोथी (6), की हत्या के मामले में सजा सुनाई गई थी। यह घटना ओडिशा के मनोहरपुर गांव में हुई थी, जहां स्टेन्स और उनके बेटों को एक भीड़ ने जिंदा जला दिया था। इस हत्याकांड के पीछे धार्मिक तनाव को कारण माना गया, क्योंकि स्टेन्स पर आरोप था कि वह स्थानीय जनजातीय लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर रहा था।
दारा सिंह को इस मामले में मुख्य आरोपी माना गया। शुरू में उन्हें 2003 में निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन 2005 में ओडिशा हाई कोर्ट ने इसे उम्रकैद में बदल दिया। इसके बाद, 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा, यह कहते हुए कि यह मामला “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” श्रेणी में नहीं आता। इसके अलावा, उन्हें 1999 में ही एक अन्य मामले में शेख रहमान नामक मुस्लिम व्यापारी की हत्या के लिए भी उम्रकैद की सजा मिली थी। इस तरह, दारा सिंह पिछले 25 साल से अधिक समय से जेल में हैं और वर्तमान में क्योंझर जिला जेल में अपनी सजा काट रहे हैं।
दारा के उम्रकैद का समय पूरा हो चुका है 14 साल तक जेल में रहने पर। फिर भी वह छूट क्यों नहीं पा रहा है?
दारा सिंह, जिनका पूरा नाम रवींद्र कुमार पाल है, को 1999 में ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बेटों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा, उन्हें एक अन्य मामले में शेख रहमान की हत्या के लिए भी उम्रकैद मिली। यह सही है कि भारत में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदियों के लिए समय से पहले रिहाई (premature release) का प्रावधान मौजूद है, और आम तौर पर 14 साल जेल में बिताने के बाद अच्छे आचरण के आधार पर कैदी इसके लिए पात्र हो सकते हैं। हालांकि, दारा सिंह की रिहाई में देरी के कई कारण हैं:
1) कानूनी प्रक्रिया और राज्य सरकार की नीति: भारत में उम्रकैद की सजा से रिहाई का फैसला राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। ओडिशा सरकार, जहां दारा सिंह सजा काट रहे हैं, ने उनकी रिहाई पर अब तक कोई सकारात्मक निर्णय नहीं लिया है। सजा पूरी होने के बावजूद, राज्य सरकारें कई बार अपराध की गंभीरता, सामाजिक प्रभाव, और राजनीतिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर रिहाई को टाल सकती हैं। दारा सिंह का मामला धार्मिक तनाव और अंतरराष्ट्रीय ध्यान से जुड़ा होने के कारण संवेदनशील माना जाता है।
2) अपराध की गंभीरता: दारा सिंह को दोषी ठहराया गया अपराध—एक मिशनरी और उसके दो नाबालिग बच्चों को जिंदा जलाना—कानून और समाज की नजर में बेहद गंभीर है। हालांकि उनकी मौत की सजा को 2005 में ओडिशा हाई कोर्ट और फिर 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया, लेकिन इस अपराध की प्रकृति के कारण उनकी रिहाई पर सहमति बनना मुश्किल रहा है। कोर्ट ने इसे “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” मामला नहीं माना, पर इसका सामाजिक और धार्मिक प्रभाव बड़ा था।
3) पैरोल और रिहाई पर असहमति: दारा सिंह को पिछले 25 साल से अधिक समय में एक बार भी पैरोल नहीं दी गई, यहां तक कि उनकी मां के अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं। उनके भाई अरविंद पाल और समर्थकों का दावा है कि ओडिशा सरकार उनकी रिहाई की फाइल को दबाए हुए है, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी रिहाई की सिफारिश की थी। यह राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी या राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव को दर्शाता है।
4) सुप्रीम कोर्ट में मामला: हाल ही में दारा सिंह की समयपूर्व रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। 19 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार को 6 सप्ताह के भीतर उनकी रिहाई पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। इससे पहले, जुलाई 2024 में उनके भाई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि दारा सिंह ने 25 साल से अधिक सजा काट ली है और छूट के नियमों के तहत वह रिहाई के हकदार हैं। फिर भी, ओडिशा सरकार और सीबीआई से जवाब मांगा गया है, और प्रक्रिया अभी लंबित है।
5) सामाजिक और राजनीतिक दबाव: इस मामले में रिहाई के पक्ष और विपक्ष में अलग-अलग मत हैं। कुछ लोग इसे हिंदू-ईसाई तनाव से जोड़ते हैं और उनकी रिहाई को समर्थन देते हैं, जबकि अन्य इसे न्याय और मानवाधिकार के नजरिए से देखते हैं। इस विवाद के कारण सरकार सख्त रुख अपना सकती है।
संक्षेप में, हालांकि दारा सिंह ने 14 साल से कहीं अधिक समय जेल में बिता लिया है (25 साल से अधिक), उनकी रिहाई कानूनी, प्रशासनिक, और सामाजिक जटिलताओं में उलझी हुई है। ओडिशा सरकार का ढुलमुल रवैया और सुप्रीम कोर्ट में चल रही प्रक्रिया ही उनकी रिहाई में मुख्य बाधा बनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट के अगले फैसले से स्थिति स्पष्ट हो सकती है।
क्या केंद्र या किसी राज्य सरकार ने अभी तक दारा की रिहाई का विरोध भी किया है?
दारा सिंह की रिहाई के मामले में केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से विरोध करने की कोई आधिकारिक जानकारी अभी तक सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आई है, खासकर नवीनतम घटनाक्रमों के संदर्भ में। हालांकि, इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो स्थिति को समझने में मदद करते हैं:
1) ओडिशा सरकार की भूमिका: दारा सिंह वर्तमान में ओडिशा के क्योंझर जिला जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। उनकी रिहाई का मामला राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, क्योंकि आपराधिक सजा से छूट या समयपूर्व रिहाई का फैसला संबंधित राज्य सरकार लेती है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 मार्च 2025 को ओडिशा सरकार को 6 सप्ताह के भीतर उनकी सजा माफी याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। अभी तक ओडिशा सरकार ने इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है, और न ही यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे उनकी रिहाई का विरोध कर रहे हैं। हालांकि, पिछले 25 सालों में उनकी रिहाई न होना और पैरोल तक न मिलना यह संकेत देता है कि ओडिशा सरकार इस मामले में सख्त रुख अपनाए हुए हो सकती है।
2) केंद्र सरकार की स्थिति: केंद्र सरकार ने इस मामले में अब तक कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप या विरोध दर्ज नहीं कराया है। दारा सिंह की रिहाई का मुद्दा मुख्य रूप से राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच चल रहा है। उनकी याचिका में राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का हवाला दिया गया है, जो तमिलनाडु सरकार और सुप्रीम कोर्ट के दायरे में था, लेकिन केंद्र ने उस मामले में भी सीधे विरोध नहीं किया था। इस आधार पर, केंद्र सरकार का दारा सिंह की रिहाई पर कोई स्पष्ट विरोध अभी तक सामने नहीं आया है।
3) सीबीआई का रुख: ग्राहम स्टेन्स हत्याकांड की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने की थी, और सुप्रीम कोर्ट ने हाल की सुनवाई में सीबीआई से भी जवाब मांगा है। हालांकि, सीबीआई का जवाब अभी लंबित है, और यह स्पष्ट नहीं है कि वे रिहाई का समर्थन करेंगे या विरोध करेंगे।
4) सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ: दारा सिंह के समर्थकों, जैसे कुछ हिंदू संगठनों, का दावा है कि ओडिशा की पूर्व बीजद सरकार (नवीन पटनायक के नेतृत्व में) ने उनकी रिहाई की फाइल को जानबूझकर दबाया था। वहीं, उत्तर प्रदेश के औरैया जिला प्रशासन ने उनकी रिहाई की सिफारिश की थी, लेकिन ओडिशा सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। यह अंतर-राज्य असहमति का मामला हो सकता है, पर इसे स्पष्ट विरोध नहीं माना जा सकता।
5) निष्कर्ष: आज की तारीख (25 मार्च 2025) तक, न तो केंद्र सरकार और न ही ओडिशा सरकार ने दारा सिंह की रिहाई का खुलकर विरोध किया है, जैसा कि किसी आधिकारिक बयान या दस्तावेज से साबित हो। हालांकि, ओडिशा सरकार की निष्क्रियता और सुप्रीम कोर्ट में चल रही प्रक्रिया से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनकी रिहाई को लेकर अनिच्छा या सतर्कता बरती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अगले 6 सप्ताह में ओडिशा सरकार और सीबीआई के जवाब से स्थिति और स्पष्ट होगी।