सुमंत विद्वांस। कुछ महीनों पहले रोज खबरें आती थीं कि भारत के हर शहर में बांग्लादेशी पकड़े जा रहे हैं। फिर अचानक वे खबरें बंद हो गईं। कितने बांग्लादेशी वापस भेजे गए या उस मामले का क्या हुआ? पता नहीं।
काशी में ज्ञानवापी का खंडित शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था। उस मामले का क्या हुआ? पता नहीं।
संभल में बड़े बड़े कारनामों के दावे किए जा रहे थे। उस मामले का क्या हुआ? पता नहीं।
वक्फ संशोधन के विरोध में कुछ दिनों पहले बंगाल से भीषण हिंसा की खबरें आई थीं। उस मामले का क्या हुआ? पता नहीं।
नए वक्फ कानून से कितना भयंकर बदलाव होने वाला है, इस बारे में खूब जोर शोर से ढोल बजाया गया था। नया कानून आने से क्या हुआ? पता नहीं।
कुछ ही दिनों पहले पहलगाम में हिन्दू पर्यटकों की हत्या हुई थी। उस मामले का क्या हुआ? पता नहीं।
पहलगाम की घटना के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानियों को देश छोड़ने का आदेश दिया और अगले दिन वह आदेश स्थगित भी कर दिया। उस मामले का क्या हुआ? पता नहीं।
अब जातिवादी जनगणना का मुद्दा उछाल दिया गया है और उससे पहले के सब मुद्दे गौण हो गए हैं। कल कोई और मुद्दा उछाल दिया जाएगा और लोग इसे भूलकर उसमें उलझ जाएंगे।
ऐसे बड़े-बड़े मुद्दे रोज उछाले जाते हैं, रोज लोगों को उनमें उलझा दिया जाता है। एक पक्ष हर बात को सरकार की कूटनीति और मास्टर स्ट्रोक बताकर बड़े बड़े दावे करता है और दूसरा पक्ष उन दावों पर सवाल उठाता है।
लेकिन न सरकार का समर्थन करने वालों को किसी मुद्दे की ठीक से जानकारी रहती है और न प्रश्न उठाने वालों को समझ आ रहा है कि वे क्या करें।
इस प्रकार लोगों को भ्रमित करके पूरी तरह भटका दिया गया है और भोले-भाले लोग मूर्खों के समान रोज आपस में लड़ रहे हैं, जबकि उन्हें पता ही नहीं कि दुश्मन कौन है और लड़ना किससे है।
यह सोचने वाली बात है कि ऐसा क्यों हो रहा है और कौन कर रहा है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि ऐसी अफरा तफरी फैलाने से शायद कुछ समय के लिए लाभ मिल भी जाए, पर समाज में जो खाई बनती जा रही है, उससे देश को लंबे समय तक कितना बड़ा नुकसान होगा और हम सब आम लोगों को उसका क्या परिणाम भुगतना पड़ेगा।
जिस समय संचार के इतने साधन नहीं थे, जब टीवी और रेडियो के नाम पर सिर्फ दूरदर्शन और आकाशवाणी थे, जब समाचार पत्रों में मनचाहा एजेंडा छापकर लोगों को बहकाया जा सकता था, जब साक्षरता कम थी और लोग पढ़ना लिखना नहीं जानते थे, तब लोग जानकारी के अभाव में भ्रमित हो जाते होंगे, यह बात तो समझ में भी आती है।
लेकिन आज जब हर किसी के पास फोन और इंटरनेट है, सबके पास दुनिया की सारी जानकारी जेब में उपलब्ध है, कब कहां क्या घटना हो रही है, सब कुछ टीवी पर लाइव दिख जाता है, यूट्यूब और वॉट्सऐप पर वीडियो आ जाते हैं, फिर भी लोग इतनी आसानी से भटक जाते हैं और सच-झूठ में उलझ जाते हैं, ये भीषण चिंता की बात है।
समाज का जिस भयानक तीव्रता से पतन हो रहा है, जिस तेजी से सामाजिकता बिखर रही है, जिस प्रकार लोग अपना विवेक खोकर उन्माद व्यक्त कर रहे हैं, जिस प्रकार से आपसी विश्वास और सौजन्यता नष्ट हो रही है, ये सब भारी संकट के लक्षण हैं।
यह बात राजनैतिक नहीं है इसलिए केवल भाजपा-कांग्रेस और राजनीति के हिसाब से मत सोचिए। वैसे भी पक्ष और विपक्ष दोनों ही समाज को भटका ही रहे हैं। आप इसे एक समाज के रूप में सोचिए। जिस प्रकार से समाज बिखर रहा है और हम अराजकता की ओर बढ़ रहे हैं, उसके परिणाम बहुत भयावह होने वाले हैं। ये किसी के समर्थन या विरोध की बात नहीं है। ये हम सबके अस्तित्व की बात है। सादर!
साभार – फेसबुक वॉल से