गुजरात के वडोदरा में एक पुल के टूट जाने और नदी में गाड़ियों समेत गिरने के बाद कई लोगों की मौत की खबर से भले ही आप चौंक गए होंगे, लेकिन स्थानीय लोग इस हादसे से गमगीन तो हैं पर चकित नहीं। 40 साल पुराना यह पुल कई सालों से जर्जर हालत में था। ऐसा भी नहीं है कि शासन-प्रशासन को इसकी खबर नहीं थी। बकायदा लेटर लिखकर, रिमाइंडर भेजकर सिस्टम को जगाने और पुल पर आवाजाही बंद करने की गुजारिश की गई, लेकिन शायद उन्हें मौत, मातम और चीत्कार का ही इंतजार था।
वडोदरा और आणंद जिले को जोड़ने वाला यह पुल माही नदी पर 1985 में बना था। वडोदरा के पादरा तालुका के गंभीराा और मुजपुर गांव के बीच बना पुल बुधवार दोपहर बीच से टूट गया। हादसे में कम से कम 16 लोगों की मौत हो गई। अब यह सामने आया है कि स्थानीय लोगों ने कई बार प्रशासन को जगाने की कोशिश की, लेकिन उनकी नींद नहीं खुल पाई। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक वडोदरा जिला पंचायत के सदस्य और मुजपुर निवासी हर्षद सिंह परमार ने तीन साल पहले सड़क एवं भवन (R&B) विभाग को लेटर लिखकर बताया था कि यह जनसुरक्षा के लिए खतरा बन चुका है।
अगस्त 2022 में परमार ने पुल को असुरक्षित घोषित करके तुरंत बंद करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि पुल को तुरंत बंद करके नए पुल का निर्माण शुरू करना चाहिए। उन्होंने आरएंडबी विभाग से कहा था कि यदि समय से कोई ऐक्शन नहीं लिया गया और किसी की जान गई तो आप जिम्मेदार होंगे। परमार ने कहा कि उनके पत्र के बाद वडोदरा जिला कलेक्ट्रेट के अतिरिक्त चिटनीस (सचिव) ने आरएंडबी विभाग के एग्जीक्युटिव इंजीनियर को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए एक पत्र भेजा।
30 अक्तूबर 2022 को गुजरात के ही मोरबी जिले में एक पुल हादसे में 135 लोगों की जान जाने के बाद परमार को फिर अपने गांव के पुल की चिंता सताने लगी। उन्होंने आरएंडबी और जिला कलेक्टर को रिमाइंडर भेजा। परमार ने कहा, ‘पुल के पिलर हिलते थे। मैंने बार-बार मांग की कि पुल की हालत पर रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। हमें सिर्फ इतना कहा जाता था कि विचार चल रहा है। प्रशासन जानता था कि पुल गिरेगा, लेकिन दुर्भाग्यवश कोई ऐक्शन नहीं लिया गया।
‘आरटीआई कार्यकर्ता और स्थानीय नेता लखन दरबार ने कहा कि 2022 में आरएंडबी डिपार्टमेंट के एक एग्जीक्युटिव इंजीनियर ने खुद स्वीकार किया था कि पुल इस्तेमाल के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, ‘पुल सुरक्षित नहीं था। टेस्टिंग रिपोर्ट निगेटिव थी,लेकिन हमारी मांगों के बावजूद रिपोर्ट को सावर्जनिक नहीं किया गया। तीन साल तक उन्होंने यह जानते हुए गाड़ियों को चलने दिया कि पुल सुरक्षित नहीं है।
