संदीप देव । कल रामनवमी पर मुझ पर भगवान श्रीराम की बड़ी कृपा रही। ‘वाल्मीकि रामायण का समाजशास्त्र’ की श्रृंखला में कल पहली बार 3 घंटे तक राम कथा का Live वाचन किया।
कल 102 वां एपिसोड था। वानर सेना और राक्षस सेना के बीच युद्ध आरंभ से लेकर पहली बार रावण के युद्ध में उतरने और श्रीराम द्वारा उसे पराजित करने तक का प्रसंग कल के एपिसोड में था।
सच कहूं तो मैं थोड़ा डरा हुआ था कि 3 घंटे कैसे बोल पाऊंगा, लेकिन न केवल बोल पाया, बल्कि युद्ध प्रसंग के रोमांच ने ऊर्जा से मुझे और मेरे दर्शकों को भी भर दिया।
ऐसा लग रहा था कि युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। रावण से राम जी के युद्ध से पहले जैसे हनुमानजी, सुग्रीव, नील और लक्ष्मण जी ने कूटनीति का उपयोग करते हुए रावण के हौसले को तोड़ा, वह अद्भुत था। रावण के अंदर क्रोध बढ़ाना और उसके आत्मविश्वास को तोड़ना, यह ऐसी युद्ध नीति थी कि रामजी के युद्ध में आने से पहले ही रावण का आधा बल समाप्त हो चुका था।
कल के वाल्मीकि रामायण के वाचन से काफी नया प्रसंग भी जानने को मिलता है। जैसे कल के ही प्रसंग से पता चला:-
१) अंगद ने रावण की सभा में पैर नहीं जमाया था, बल्कि अपने पैर से उसके छत पर प्रहार करते हुए रावण की सभा का पूरा छत ही तोड़ कर आकाश मार्ग से निकल गये थे। पैर जमाने का प्रसंग रामचरितमानस में आया है।
२) अंगद ने एक नहीं, दो बार रावण पुत्र और मायावी व बलशाली इंद्रजीत को परास्त किया था।
३) इंद्रजीत ने युद्ध की पहली रात्रि ही राम-लक्ष्मण को नागपाश से बांध दिया था। नागपाश से मुक्ति के लिए हनुमानजी गरुड़ जी को बुलाने नहीं गये थे, बल्कि गरुड़ जी स्वयं आए थे।
दोनों को नागपाश से मुक्त कर गरुड़ जी ने राम जी से कहा, “मैं आपका सखा हूं। आपके बाहर विचरन करने वाला आपका प्राण हूं। जब युद्ध समाप्त हो जाएगा तब आपको स्वयं ही ज्ञात हो जाएगा कि मैंने आपको यह क्यों कहा।”
जो लोग बार-बार यह बोलते या लिखते हैं कि वाल्मीकि जी ने राम का केवल मानवीय स्वरूप प्रस्तुत किया, उन्हें विष्णु अवतार नहीं कहा, उन्हें गरुड़ जी का कहा यह प्रसंग ध्यान से पढ़ना चाहिए।
४) कल के प्रसंग में ही रावण के नाना माल्यवान ने रावण से कहा, “मानव रूप में श्री विष्णु ही राम बनकर आए हैं।” तो राम को महापुरुष, इमामे-हिंद, असाधारण मानव जैसे संबोधन से संबोधित कर उनके ईश्वरीय अवतार की अवहेलना करने वाले आज के लोगों से कहीं अच्छा तो राक्षस माल्यवान प्रतीत होता है। वाल्मीकि जी ने अनेकों बार यह संकेत करते हुए स्पष्ट किया है कि श्रीराम विष्णु के अवतार हैं।
५) सभी वानर देव पुत्र और इच्छाधारी थे, जो कोई भी रूप ले सकते थे, वाल्मीकि जी ने यह बार-बार लिखा है। इसके बावजूद आर्य समाज, आनंद निलकंठन, निलेश ओक, रूपा आदि बार-बार यह कहते-लिखते हैं कि वानर मनुष्य थे न कि वानर। और ताज्जुब कि यह लोग वाल्मीकि रामायण के नाम पर यह सफेद झूठ बोलते हैं!
कल के एपिसोड में रामजी युद्ध नीति के तहत स्पष्ट आदेश देते हैं कि कोई भी इच्छाधारी वानर मनुष्य रूप नहीं लेगा। इससे हमें राक्षस और वानरों के बीच का अंतर पता चलता रहेगा। केवल 7 लोग ही मनुष्य रूप में लड़ेंगे। मैं, लक्ष्मण, विभीषण और उनके चार सचिव।
६) वाल्मीकि रामायण से यह भी पता चला कि लक्ष्मण जी को शक्ति वाण रावण ने मारा था न कि मेघनाद ने। और रावण ने ही युद्ध भूमि में अचेत लक्ष्मण जी को उठाने का प्रयास किया था, न कि मेघनाद ने। यहां भी वाल्मीकि जी लक्ष्मण जी के अनंत (शेषनाग) विष्णु रूप का संकेत करते हैं।
७) मेघनाद ने नागपाश के बाद राम-लक्ष्मण पर एक साथ ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था, उसे काटने के लिए हनुमानजी जी बूटी लाने हिमालय गये थे।
ऐसे अनेक नये तथ्यों का पता वाल्मीकि रामायण के पाठ से चलता है। ब्रह्मांड में रामकथा का प्रथम रूप वाल्मीकि जी ने ही लिखा और वह राम के समकालीन थे, इसलिए वाल्मीकि रामायण के जरिए उस समय के समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, युद्ध नीति, धर्म नीति आदि का बड़ा स्पष्ट पता चलता है।
रामजी की कृपा इस कथा के प्रायोजकों सहित कथा श्रवण करने वाले सभी सनातनियों पर बनी रहे। नारद जी सनत्कुमार से कहते हैं कि चैत्र महीने में जो रामकथा का श्रवण करता है, उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं। कल रामनवमी पर ऐसा अवसर उपलब्ध हुआ, यह प्रभु श्रीराम की ही कृपा थी। जयश्री राम 🙏।