संदीप देव। मोदी सरकार के कैबिनेट द्वारा जातिगत जनगणना कराए जाने की घोषणा पर पता नहीं लोग क्यों आश्चर्य कर रहे हैं? और मुझसे मेरी राय मांग रहे हैं? मुझे आश्चर्य नहीं है! मोदी सरकार आज नहीं तो कल इसकी घोषणा करती ही! जिस पार्टी का इतिहास जातिवाद और हिंदू समाज को और अधिक जातियों में विभाजित करने से जुड़ा हो, वह यदि जातिगत जनगणना नहीं कराती तो आश्चर्य की बात थी!
आप ध्यान दीजिए। स्वतंत्रता के बाद हिंदुओं को जातियों में विभाजित करने और सवर्णों को हासिए पर ढकेलने की सबसे बड़ी शुरुआत कब हुई थी? यह हुई थी वर्ष 1979 में मंडल कमीशन के निर्माण से। उस समय मोरारजी-वाजपेई वाली जनता पार्टी की सरकार थी, जिसमें 90 सांसदों के साथ सबसे बड़ा दल जनसंघ था। 1980 में मंडल कमीशन रिपोर्ट आई। बाद में इंदिरा गांधी और उनकी मृत्यु के बाद बनी राजीव गांधी की सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
फिर 1989 में भाजपा के सहयोग से जनता दल की वी.पी.सिंह सरकार बनी और उस सरकार ने मंडल कमीशन को लागू कर दिया, जबकि मंडल कमीशन बिना जातिगत जनगणना के एक फर्जी कमीशन थी, इससे सभी परिचित थे, फिर भी इसे लागू किया गया!
खुद वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी ने ही संसद में कहा है कि इस मंडल कमीशन को लागू करने का राजीव गांधी ने संसद में विरोध किया था कि इससे देश विभाजित होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में यह भी बताया था कि जातियों पर पहली रिपोर्ट काका कालेलकर आयोग की थी, जिसे जवाहरलाल नेहरू ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
राज्यसभा में भाजपा नेता सुशील मोदी का संपूर्ण भाषण है, जिसमें वह इसे जनसंघ और भाजपा के लिए गर्व का विषय बताते हैं कि हमने मंडल कमीशन बनाया और लागू भी हम ही ने किया। सुशील मोदी यह भी बताते हैं कि राजीव गांधी ने SC/ST act को दोनों सदन में पारित करने के बावजूद उसे लागू नहीं किया था, परंतु भाजपा के समर्थन वाली वीपी सिंह सरकार ने उसे पहली बार लागू किया। बाद में मोदी सरकार ने SC/ST act पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटते हुए SC/ST act को और मजबूत बनाया। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा है कि उन्होंने SC/ST act में आपराधिक प्रावधानों को 23 या 25 से बढ़ाकर 47 के करीब कर दिया है। इससे हिंदू समाज और अधिक विभाजित हुआ। इसका सर्वाधिक दंश OBC और सवर्ण जातियों को झेलना पड़ रहा है!
OBC आयोग को संवैधानिक दर्जा भी मोदी सरकार ने दिया। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया था कि OBC की संख्या निर्धारण केवल केंद्र सरकार करेगी, लेकिन मोदी सरकार ने इसे भी पलटते हुए राज्य सरकारों पर इसकी संख्या निर्धारण की पूर्व नीति लागू रखी। इसका दुरुपयोग यह है कि हर पार्टी की सरकार अपने-अपने हिसाब से OBC जातियां घोषित करती जा रही हैं। इसका आकार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जा रहा है। हर जाति आगे होने की जगह पिछड़े होने की लड़ाई लड़ रही है! जब आप पिछड़े होने को लालायित हैं तो देश आगे कैसे बढ़े सकता है? यह छोटी-सी बात भी हिंदुओं को समझ में नहीं आ रही है!
इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST आरक्षण में क्रिमिलेयर लागू करने की बात की थी, तो उसका विरोध भी इस सरकार ने किया कि SC/ST आरक्षण में कोई फेरबदल नहीं होगा।
मंडल कमीशन ने पहली बार असंवैधानिक रूप से धार्मिक आरक्षण का रास्ता खोला। इसके तहत मुस्लिम और ईसाई भी आरक्षण का लाभ लेने लगे, जबकि संविधान सभा में सरदार पटेल ने इसका विरोध किया था। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने ANI को दिए साक्षात्कार में कहा कि मैं जब गुजरात का मुख्यमंत्री था तो 70 मुसलमान जातियों को OBC आरक्षण का लाभ देता था।
यही नहीं, धर्मांतरित मुसलमान और ईसाईयों को SC/ST में आरक्षण का लाभ मिले, इसका अध्ययन करने के लिए मोदी सरकार ने ही 2022 में जस्टिस बालाकृष्णन आयोग का गठन किया है। इस आयोग का गठन कांग्रेस द्वारा 2004 में गठित जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग के प्रावधानों को लागू करने के लिए किया गया। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिश है कि जो SC/ST हिंदू अपना धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम और ईसाई बने हैं उनको भी आरक्षण का लाभ मिले! जबकि यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। संविधान में धर्म के आधार पर किसी भी आरक्षण की मनाही है, परंतु पहले OBC की आड़ में इसे लागू किया गया और देर सवेर जस्टिस बालाकृष्णन आयोग की रिपोर्ट भी आएगी, तब SC/ST के अंदर भी धर्मांतरित मुस्लिम और ईसाई को इस आरक्षण का लाभ मिलेगा, यह तय है!
तो जिस पार्टी ने आजाद भारत में जब-जब उसे सत्ता मिली, उसने जातिवाद को आयोग और कानून बनाकर बढ़ावा दिया, यदि वह जातिगत जनगणना नहीं कराती तो वह आश्चर्य का विषय होता! हिंदुओं का जातिगत विभाजन जिस पार्टी ने बार-बार किया हो, उसकी सरकार यदि जातिगत जनगणना कराने की घोषणा करती है तो इसमें आश्चर्य कैसा?
मैं मोदी सरकार के इस जातिगत जनगणना कराने के निर्णय का स्वागत करता हूं। मेरे द्वारा इसके स्वागत की दो प्रमुख वजह है। पहली, हिंदुओं की सवर्ण जाति सबसे अधिक पार्टीबाज और भाजपा समर्थक है। सबसे अधिक जाति जनगणना से वही हासिए पर फेंके जाने वाली है, फिर उसे तो इसका स्वागत करना ही चाहिए! है न? आखिर मेरा मुंसिफ (न्याय प्रदान करने वाला) ही मेरा क़ातिल हो, इस ‘स्टॉकहोम सिंड्रोम’ के शिकार सवर्ण हिंदुओं को इसका असली लाभ तो मिलना ही चाहिए!
दूसरा, जिस हिंदू OBC और SC/ST को अभी यह फायदे का सौदा लग रहा है और वह अपने-अपने जातिवादी नेताओं के बहकावे में इसके लिए गोलबंद हुए हैं, देर-सवेर उनका विघटन भी इससे होने वाला है! हां उसमें अभी थोड़ा लंबा वक्त है।
जो OBC व SC/ST नेता और पार्टियां जैसे- सपा, बसपा, राजद, तृणमूल कांग्रेस, राहुल गांधी की कांग्रेस, दक्षिण की द्रविड़ पार्टियां आदि अभी OBC और SC/ST समर्थन में इस जातिगत जनगणना की वकालत करती दिख रही हैं, असल में यह सब भी इन जातियों की नहीं, मुस्लिम और ईसाईयों के समर्थक हैं! वैश्विक नेता होने के लिए ‘डीप स्टेट’ की इस पहली शर्त को सभी पूरा करने में जुटे हैं, भले आपको यह अपनी-अपनी जातियों के समर्थक लग रहे हों!
मेरी यह बात आपको तब समझ में आएगी जब जेपी मूवमेंट और मोरारी देसाई के पीछे CIA के तंत्र को आप समझ पाएंगे और इस मूवमेंट से निकले नेताओं के जातिवादी स्वरूप से उसका मिलान कर पाएंगे! जेपी मूवमेंट के बाद ही बनी पहली मोरारजी-वाजपेई सरकार के मंडल कमीशन निर्माण से लेकर उससे निकलने लालू, मुलायम, नीतीश आदि जातिवादी नेताओं की विघटनकारी राजनीति का अध्ययन कीजिए। सब स्पष्ट हो जाएगा।
अमेरिकी खोजी पत्रकार और लेखक सेमोर हर्श ने लिखा है कि 1977 से 1979 के बीच भारत के प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के मुखबिर थे CIA उन्हें फंड करती थी। ये आरोप 1983 में प्रकाशित हर्श की पुस्तक ‘द प्राइस ऑफ पावर: किसिंजर इन द निक्सन व्हाइट हाउस’ के एक भाग में लगाए गए थे। मोरारजी देसाई ने हर्श पर मानहानि का दावा भी किया था, लेकिन अमेरिकी अदालत में उनका यह दावा खारिज हो गया था।
2018 में वर्तमान मोदी सरकार एक बिल लेकर आई, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि 1976 से जिन पोलिटिकल एक्टिविटी में विदेशी फंड आया है, उसकी जांच नहीं होगी! आखिर 1976 का ही यह डेडलाइन्स क्यों तय किया गया? तो आपको याद है न कि आपातकाल और जेपी मूवमेंट का टाईम भी कमोबेश यही था और हिंदुओं को जातियों में विभाजित करने की नींब भी इसी मूवमेंट से निकली सरकार ने मंडल कमीशन बनाकर रखी थी?
आगे बढ़ते हैं! इस जातिगत जनगणना का सबसे बड़ा लाभ मुस्लिमों को होगा, जिसके लिए ‘पसमांदावाद’ की अवधारणा गढ़ी गई हैं। इसका बड़ा लाभ ईसाईयों को भी होगा, जो अभी तक हिंदू नाम की आड़ में अपने धर्मांतरण को छुपाए हुए SC/ST आरक्षण का लाभ चोरी-छिपे ले रहे हैं, जैसे मणिपुर के कूकी क्रिश्चियन! जातिगत जनगणना से एक झटके में सामाजिक इक्वेशन बदल जाएगा। भले दशक-दो दशक लग जाए, सवर्णों की तरह हिंदू OBC और SC/ST भी भविष्य में हासिए पर ढकेल दिए जाएंगे। इससे धर्मांतरण और तेज होगा। अधिक से अधिक सरकारी लाभ लेने के लिए हिंदू OBC और SC/ST में मुस्लिम-ईसाई बनने की होड़ तेज होगी!
ज्ञात हो कि मुस्लिम जनसंख्या अभी ही 25 करोड़ के पार पहुंच चुकी है। इसी जनसंख्या पर सरकारी संसाधनों के करीब 40 फीसदी हिस्से पर उनका अधिकार स्थापित हो चुका है तो आगे उनकी असली संख्या यदि 30 करोड़ के पार पहुंच गई तो क्या-क्या होगा आप खुद ही सोच लीजिए?
अंत में जो OBC और SC/ST आज ‘जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ की गफलत में इस जातिगत जनगणना के प्रबल समर्थक हैं, भविष्य तो सवर्णों की तरह उनका भी अंधकारमय ही है।
कुल मिलाकर हिंदू समाज एक बड़े विघटन के दौर से गुजरने वाली है और इसका दोषी स्वयं हिंदू है जो अपने धर्म के मूल तत्व को समझने की जगह अपनी अलग-अलग पार्टियों और नेताओं के क्लब में विभाजित है। अतः जो स्वयं अपने विघटन की पटकथा लिख रहा हो, उसका विरोध भला मैं क्यों करने लगा? यही कारण है कि मैं मोदी सरकार के इस जातिगत जनगणना के फैसले का समर्थन करता हूं!
पृथ्वी की आखिरी मूर्तिपूजक जाति को मिट ही जाना चाहिए, यदि वह अभी भी गुरु, गोविंद और ग्रंथ की जगह पार्टियों और नेताओं को अपना तारणहार समझता हो तो?