कटी-पतंग बन जाये स्त्री !
दुरुपयोग सत्ता का कितना ? सीमायें सारी टूट रही हैं ;
लोकतंत्र की अंतिम – सांसें , धीरे – धीरे छूट रही हैं ।
जागरूक जब नहीं हो जनता व प्रेस-मीडिया बिक जाये ;
तब पूरा – शासन बेकाबू होकर , भ्रष्टाचार में लग जाये ।
अब्बासी-हिंदू भारत का नेता , ब्लैकमेलिंग का पुतला है ;
पहले होता है फिर खुद करवाता, अब्राहमिकों का चेला है ।
नैतिकता की हर – मर्यादा , जाने कब की छोड़ चुका है ;
जिन पर चढ़कर बढ़ा था आगे , उन कंधो को तोड़ चुका है ।
जनता का विश्वास खो चुका , खुल गई है पूरी पोल पट्टी ;
केवल गुंडागर्दी के बल पर , गांठ रहा है सब पर चड्डी ।
किस किसको ये खामोश करेगा , इतनी भी औकात कहाॅं है ?
सबको हरदम मूर्ख बना लो , ऐसा होता कभी कहाॅं है ?
बता दे हिंदू ! क्यों डरता है ? पता नहीं किससे डरता है ?
धर्महीन – अज्ञानी हिंदू ! भेड़ – बकरी बनकर कटता है ।
सर्वश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , पूरी तरह है अमृतमय ;
हिंदू ! तू जब से धर्म को भूला, बन गया है जीवन कष्टमय ।
धर्म भुलाने में अगुआ हैं , चरित्रहीन – ढोंगी – बाबा ;
हिंदू-धर्म के यही विनाशक , बना रहे भारत को काबा ।
अब्बासी-हिंदू के ये सब साथी, आपस में गलबहियां हैं ;
धर्म-सनातन के ये दुश्मन , अब्राहमिक इनके सैंया हैं ।
दोनों-पाट बने चक्की के , हिंदू ! को मिलकर पीस रहे हैं ;
“डीप-स्टेट” के “सबवर्जन” को , दोनों मिलकर खींच रहे हैं ।
इन सब का उद्देश्य यही है , सारे हिंदू ! जिम्मी बन जायें ;
बिना युद्ध भारत ! गुलाम हो , धूल-धूसरित हो जाये ।
देशभक्त ये नहीं है बिलकुल , पूरा-चरित्र संदिग्ध है ;
हद-दर्जे के लम्पट हैं सब , कामवासना कर रही दग्ध है ।
पति – पत्नी सम्बंध तोड़ते , ऐसे कानून बनाते हैं ;
कटी – पतंग बन जाये स्त्री ! खुलकर उसे लूटते हैं ।
धर्महीन – अज्ञानी – हिंदू , अपना सत्यानाश कर रहा ;
स्वार्थ,लोभ,भय,भ्रष्टाचार से , भारत का पूर्ण-विनाश हो रहा ।
थोड़ा-बहुत बचा है भारत ! अधिकांश तो पहले नष्ट हो चुका ;
जो भी गलती हुई थी पहले , हिंदू ! उन सबको भुला चुका ।
कोई भी गलती मत भूलो , उन सबका परिष्कार करना है ;
सबसे पहला काम यही हो , अच्छी – सरकार बनाना है ।
जब तक अच्छी-सरकार न होगी , हिंदू ! तू न जी पायेगा ;
किसी तरह से बचे हो जितने , वो भी न बच पायेगा ।